यादें ...
ताजमहल का रूप हो तुम,
सर्दी के दिन में निकली
गुनगुनाती धूप हो तुम.
पैरो में पायल छनकाती
अपने कदम बढाती हो,
चाँद भी शर्मा जाता है
जब तुम छत पर आती हो.
कैसी भी तन्हाई हो
मै नहीं अकेला होता हूँ,
जाते जाते यादो का
इक गुलदस्ता दे जाती हो.
अरशद हाशमी.