arshad
Monday, August 15, 2011
poem | मन की गली
poem | मन की गली
Saturday, February 19, 2011
यादें ...
शब्दों से बढकर सुन्दर हो
ताजमहल का रूप हो तुम,
सर्दी के दिन में निकली
गुनगुनाती धूप हो तुम.
पैरो में पायल छनकाती
अपने कदम बढाती हो,
चाँद भी शर्मा जाता है
जब तुम छत पर आती हो.
कैसी भी तन्हाई हो
मै नहीं अकेला होता हूँ,
जाते जाते यादो का
इक गुलदस्ता दे जाती हो.
अरशद हाशमी.
Friday, December 17, 2010
एक रस्ता सीधा साधा सा
कुछ पूरा कुछ आधा सा,
चलते- चलते
थक सा गया है
एक बच्चा भोला भला सा .
आओ उसको प्यार करें
कुछ सपने साकार करें .
इन बच्चों को संग मैं लेकर
नव भारत कानिर्माण करें.
अरशद हाश्मी, आगरा .
बेहतर हैं अँधेरे गर दोस्तों का साथ हो ,
कंदील लेकर अकेले चले भी तो क्या चले.
अरशद हाश्मी ,आगरा .
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